-बलिया बलिदान दिवस
-नगर भ्रमण कर क्रांतिकारी शहीदों को नमन कर पहनाया माला
बलिया : सन 1942 के जंग-ए-आजादी आजादी के दीवानों का हुजूम, हिंदुस्तान जिंदाबाद और भारत माता की जय जैसे नारों से गूंजती फिजाएं और चहुंओर बही देशभक्ति की बयार। 79 वें साल भी बलिया बलिदान दिवस पर गुरुवार को बलिया जिला जेल के बाहर का नजारा सुबह कुछ ऐसा ही था। इतिहास तारीख बन कर एक बार फिर सामने खड़ा था।
हर साल की तरह जेल के फाटक को प्रतीकात्मक तौर पर खोल दिया गया। भारत माता की जय व वंदे मातरम की गगनभेदी नारे गूंज उठे। सेनानियों के साथ देशभक्ति के रंग में डूबे लोगों ने यहां जुलूस की शक्ल में निकल कर शहर के सभी सेनानियों के प्रतिमाओं पर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसके बाद टाउन हॉल में आजादी के दीवानों की वीर गाथा को याद किया।
अगस्त 1942 को तब जेल का फाटक खोला गया था और स्वतंत्रता आंदोलन के दीवाने आजाद हुए थे। उस समय जिले ने न सिर्फ बागी बलिया का तमगा हासिल किया बल्कि देश में सबसे पहले आजाद होने का गौरव भी हासिल कर लिया था। इस ऐतिहासिक घटना को प्रतीकात्मक रूप में जब गुरुवार को दोहराया गया तो जिला कारागार के आसपास का पूरा माहौल देशभक्ति के रंग में सराबोर हो गया।
उन पलों को याद कर के जिले के लोगों की भुजाएं फड़कने लगीं। इसके बाद जुलूस की शक्ल में नगर भ्रमण करते हुए नगवासियों ने देश के सच्चे सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की। साथ ही कहा कि बागी बलिया को गुलामी न तब सहन थी और न ही अब इसे बर्दाश्त किया जाएगा। बलिया बलिदान दिवस पर नगर में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इनमें विभिन्न संगठनों के लोगों ने प्रतिभाग कर सेनानियों द्वारा दी गई कुर्बानी को याद किया। जिला कारागार पर स्वतंत्रता सेनानी रामविचार पांडेय के साथ डीएम अदिति सिंह, एसपी राजकरन नैय्यर, ओंकार सिंह सुबह ही जेल के मुख्य द्वार के बाहर इकट्ठा हो गए थे। जिलाधिकारी अदिति सिंह की मौजूदगी में सुबह नौ बजे जेल का मुख्य फाटक खोल दिया गया।