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पूर्वांचल बलिया राजनीति राज्य

अपनी ही पार्टी में अपने सजातीय भाईयों को भी अपने साथ करने में विफल साबित हो रहे मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल

-हाल 361 बलिया नगर विधानसभा का
-बलिया नगर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से टिकट मांगने वालों में सर्वाधिक वर्तमान मंत्री के स्वजातीय लोग

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शशिकांत ओझा
बलिया : वैसे कहा जाता है कि राजनीति में जातिवाद नहीं होता पर यह कटु सत्य भी है कि बिना जातिवाद के आज की राजनीति होती ही नहीं है। सभी जातियां राजनैतिक दलों से पूरी तरह जुड़ ही चुकी हैं। राजनैतिक दलों के समीकरण भी जातियों के हिसाब से बन रहे हैं। बलिया जिले के 361 नगर विधानसभा क्षेत्र का परिदृश्य पूरी तरह अलग है। नगर विधानसभा क्षेत्र के विधायक युवा और ब्राह्मण हैं। पहली बार सदन में गए हैं। प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं पर उनके ही दल में उनकी जगह टिकट मांगने वालों की भरमार है। नगर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगने वाले नेताओं में सर्वाधिक ब्राह्मण हैं। इससे स्पष्ट है कि या तो मा.मंत्री जी ने भाजपा के लोगों और अपने स्वजातीय लोगों को भी संतुष्ट नहीं किया है।

भारतीय जनता पार्टी ने किसी भी क्षेत्र में उम्मीदवार पहले का ही रहेगा समाजवादी पार्टी की तरह घोषणा नहीं की है। इससे विधानसभा क्षेत्र में पहुंचने की उम्मीद रखने वालों की कतार सबसे अधिक है। भाजपा कोटे की पांच सीटों में वैसे हर जगह पदासीन विधायकों के विरुद्ध टिकट मांगे जा रहे हैं पर 361 नगर विधानसभा क्षेत्र की स्थिति सबसे इतर दिख रही है।
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में आनंद स्वरूप शुक्ल का टिकट फाइनल कर लोगों को अचंभित किया। छात्रसंघ की राजनीति से निकले सामान्य जनाधार वाले नेता को टिकट मिलने के बाद भघ नरेंद्र मोदी का इक्का चला और पूर्व मंत्री नारद राय को पराजित कर आनंद स्वरूप शुक्ल विधानसभा में दाखिल हुए। अभी उनके पांच साल पूरा होने को है। भाजपा नई परंपरा के लोगों की छोटीफौज जरूर बनी है पर पहले लोग कम संतुष्ट हैं। विधायक को उनके ही दल के साथी दूसरी बार अवसर नहीं देना चाहते इसमें ब्राह्मण सर्वाधिक हैं। नगर विधानसभा क्षेत्र से टिकट मांगने वालों में पूर्व विधायक भगवान पाठक, प्रदेश कार्य समिति के सदस्य नागेंद्र पांडेय, पूर्व ब्लाक प्रमुख दिनेश पाठक, जितेंद्र तिवारी, नकुल चौबे, पीयूष चौबे, वरिष्ठ पांडेय वीरेंद्र पाठक टुनजी, अनूप चौबे, संजय मिश्र आदि शामिल हैं। इन लोगों की सूची देख आज के दौर की राजनीति के परिदृश्यों को देख यह यक्ष प्रश्न उठ रहा है कि आनंद से आखिर ब्राह्मण क्यों नाराज या असंतुष्ट है।

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