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देश बलिया राज्य

पश्चिमी चिंतन भौतिकवादी और भारतीय चिंतन अध्यात्मिक : प्रो. काटडरे

-जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के पं० दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के द्वारा डीडीयू शिक्षा दर्शन पर आनलाइन व्याख्यान

बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के पं. दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के द्वारा दीनदयाल उपाध्याय शिक्षा दर्शन विषय पर मंगलवार को एक आनलाइन व्याख्यान का आयोजन हुआ। पुनरूत्थान विद्यापीठ, अहमदाबाद, गुजरात की कुलपति प्रो० इंदुमती काटडरे ने उद्बोधन दिया।
प्रो. इंदुमती ने कहा कि पश्चिमी चिंतन परंपरा मूलतः भौतिकतावादी है जबकि भारतीय चिंतन मूलतः आध्यात्मिक है। एकात्म मानववाद बीसवीं शताब्दी का विचार है लेकिन भारतीय दर्शन में यह सदियों से विद्यमान है। वर्तमान शिक्षा पद्धति भारतीय नहीं है बल्कि पश्चिमी है जो भारतीय चिंतन के विपरीत है। भारतीय शिक्षा प्रणाली धर्म पर आधारित है और मनुष्य को मानवीय बनाती है l हमें इस शिक्षा पद्धति की विशेषताओं को समाहित करते हुए नयी शिक्षा प्रणाली स्थापित करनी होगी जिसमें शिक्षकों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका हो जिसके द्वारा राष्ट्र की चिति के अनुरूप शिक्षण दिया जाये। शिक्षकों में पहले ज्ञाननिष्ठा, फिर राष्ट्रनिष्ठा, फिर समाजनिष्ठा, फिर छात्रनिष्ठा और अंत में आत्मनिष्ठा होनी चाहिए। करीब दो सौ वर्षों की पराधीनता के बाद भी भारतीयता नष्ट नहीं हुई क्योंकि आध्यात्म और धर्म हमारी संस्कृति के मूल आधार हैं। हमें इस परंपरा पर गर्व करना होगा और इसी परंपरा के आधार पर नयी शिक्षा नीति विकसित की गयी है, जिसके द्वारा हम पुनः भारत को वैभवशाली बना सकते हैं।

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अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो० कल्पलता पांडेय ने कहा कि हमें श्रम के महत्त्व को स्वीकारना होगा तभी हम वास्तविक रूप से भारतीय होंगे। कर्तव्य की राह पर चलकर ही अधिकार की प्राप्ति हो सकती है, इसीलिए हमें पहले नागरिक कर्तव्यों का पालन करना होगा। भारत जो हमारे अंदर विद्यमान है उसे बाहर निकालना होगा यही हर विश्वविद्यालय का लक्ष्य होना चाहिए।
इस गोष्ठी में प्रो. जसबीर सिंह, प्रो. विनोद मिश्र, डा. प्रतिभा त्रिपाठी, डा. गणेश पाठक, डा. अशोक सिंह, डा. अरविंद नेत्र पांडेय, डा. साहेब दूबे आदि देश – विदेश के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान, प्राचार्य, प्राध्यापक गण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी जुड़े रहे। इस गोष्ठी में अतिथियों का स्वागत और परिचय डा. प्रमोद शंकर पांडेय, बीज व्यक्तव्य डा. रामकृष्ण उपाध्याय तथा धन्यवाद ज्ञापन डा. जैनेंद्र कुमार पांडेय ने किया।

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