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एक नेता ऐसे भी : कहने को दानवीर, कोविड काल में भी मदद ना के बराबर

-विपक्ष की पार्टी से विधानसभा चुनाव लड़ने का दावा पर सरकार के विरुद्ध एक शब्द भी बोलने से परहेज़
-सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधि के निधि से कार्य मुख्य कर्म परंतु विपक्ष के मुख्य पार्टी का नेता होने का रखते दम

बलिया : एक कहावत है ” मोहब्बत और जंग में सबकुछ जायज है”। बलिया जिले के बैरिया विधानसभा क्षेत्र में यह इनदिनों शत प्रतिशत लागू भी है। चुनावी मौसम है सभी अपने अपने तरीक़े से जुटे हैं। एक नेता ऐसे भी हैं जो विपक्ष की प्रमुख पार्टी से टिकट ले विधानसभा का चुनाव लड़ने की मंशा तो रखते हैं पर सत्ताधारी दल के सांसद और विधायक के विरूद्ध एक शब्द बोलने से भी परहेज करते हैं। कहने को तो दानवीर भी हैं पर कोरोना के प्रथम चरण में किसी गरीब की मदद नहीं की। साढे चार साल तक दिखे भी नहीं और अब दानवीर का प्रमाण पत्र टांगें घूमने लगे।

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हालांकि भाजपा यूपी और केंद्र दोनों जगह सत्ता में है इसलिए उनसे लड़ने के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस दोनों को सतर्क रहना ही होगा। सत्ताधारी दल के नेता की निधि का काम कर अपनी आजीविका चलाने का इंतजाम करने वाला उनके विरुद्ध क्या लड़ेगा तह समय ही बताएगा। यदि किसी दल ने टिकट दिया तो वह सत्ताधारी दल के उस प्रतिनिधि को ग्रीन सिंग्नल ही देगा। वैसे तो नेता जी अपने महिमा मंडन और प्रशंसा में जुटे रहते हैं पर जिस बैरिया से विधायक बनने की मंशा है वहां के दो क्षेत्र पंचायत मुरलीछपरा और बैरिया में ब्लॉक प्रमुख बनाने की भी स्थिति नहीं।

द्वाबा राजनीति में पहले भी तरह तरह के निर्णय करते रहा है। देखना है इस नेता के साथ वह क्या करेगा। हालांकि मजे वाली बात यह है कि उस अवसरवादी नेता की जेब वाली गर्मी उसी पार्टी के कुछ नेताओं को उनकी महिमा मंडन को विवश कर रही है।

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