-बलिया बलिदान दिवस विशेष
-अंग्रेजों ने अपने परिवार को एक जगह सुरक्षित कर क्रांतिकारियों के समक्ष किया था सरेंडर
शशिकांत ओझा
बलिया : 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आजाद हुए देश के तीन जिलों में से एक उत्तर प्रदेश के बलिया जिले को अपनी आजादी की 80वीं वर्षगांठ मनानी है। प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ कार्यक्रम में सहभाग को आ रहे हैं। आजादी वाला जश्न सुबह नौ बजे शुरू हुआ। मुख्यमंत्री के साथ जिलाधिकारी सौम्या अग्रवाल और पुलिस अधीक्षक राजकरन नैय्यर जिला कारागार पहुंच कर जेल का फाटक खुलवाएंगे। जानिए इस दिवस को बलिया क्यों मनाता है।
बलिया में आजादी का यह जश्न मनाने की यह परम्परा बहुत पुरानी है। कारण महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की आग में पूरा जिला जल रहा था। जनाक्रोश चरम पर था। जगह- जगह थाने जलाये जा रहे थे। सरकारी दफ्तरों को लूटा जा रहा था। रेल पटरियां उखाड़ दी गई थी। जनाक्रोश को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने आंदोलन के सभी नेताओं को जेल में बंद कर दिया था। लेकिन लोगों का गुस्सा थमने का नाम नहीं ले रहा था। 19 अगस्त को लोग अपने घरों से सड़क पर निकल पड़े थे। जिले के ग्रामीण इलाके से शहर की ओर आने वाली हर सड़क पर जन सैलाब उमड़ पड़ा था। भारी भीड़ शहर की ओर बढ़ रही थी। जैसे ही यह सूचना प्रशासन को मिली उसके होश उड़ गए। अफसरों ने अपने परिवार को पुलिसलाइन में सुरक्षित कर दिया था। तत्कालीन कलेक्टर जे.निगम जिला कारागार पहुंचे थे। जेल में बंद आंदोलन के नेताओं को रिहा करते हुए भीड़ का आक्रोश शांत करने का निवेदन किया था। जेल में बंद आंदोलन के नेता बाहर निकले थे। चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में भीड़ आज के क्रांति और उस समय के टाउनहाल के मैदान में पहुंची थी। वहीं बलिया के आजाद होने की घोषणा हुई थी। चित्तू पाण्डेय आजाद बलिया के पहले कलेक्टर घोषित किए गए थे। 80 वर्ष पहले घटी उस घटना को परम्परागत ढंग से दोहराया जाता है। बलिया 15 अगस्त को तो देश का स्वतंत्रता दिवस मनाता है पर 19 अगस्त को अपनी स्वाधीनता दिवस को याद करता है।