Advertisement
7489697916 for Ad Booking
अन्य उत्तर प्रदेश देश पूर्वांचल बलिया राज्य

शिष्यों के प्रति स्नेह भाव और उन्हें  नि:स्वार्थ ज्ञान बांटना ही गुरु की महत्ता

-गुरु पूर्णिमा विशेष

-संगीत आचार्य जया उपाध्याय ने “बलिया समाचार” संग बांटा अनुभव

शशिकांत ओझा

बलिया : प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के संबंधों का आधार था गुरु का ज्ञान, मौलिकता और नैतिक बल, शिष्यों के प्रति स्नेह भाव तथा उन्हें ज्ञान बांटने का नि:स्वार्थ भाव। आज भी गुरु और शिष्य के बीच यही संबंध और भाव मूल है।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर संगीत आचार्य जया उपाध्याय ने बलिया समाचार संग अपना अनुभव साक्षा किया। कहा कि गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा गुरु की क्षमता में पूर्ण विश्वास तथा उनके प्रति पूर्ण समर्पण एवं आज्ञाकारिता, अनुशासन शिष्य का सबसे महत्वपूर्ण गुण माना जाता है। गुरु वचनों को प्रेम पूर्वक ह्रदय में धाराण करता है वह अपने जीवन काल में सदैव सुख ही प्राप्त करता है। गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों की समर्पित परंपरा है जिन्होंने कर्म, योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हो। कहा यह पर्व हिंदू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों /अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है।

गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान-प्रदान नहीं होता बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है उसका उद्देश्य  रहता है कि गुरु कभी उसका अहित तो सोच ही नहीं सकता। यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी  अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा। आचार्य चाणक्य ने एक आदर्श विद्यार्थी के पांच गुण इस प्रकार बताए हैं।

“काक चेष्टा बको ध्यानम श्वान निद्रा तथैव च।

अल्पाहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम्।

कहा गुरु की महिमा अकथनीय है । बड़े-बड़े पाप का फल गुरु चुटकियों में निपटा देते हैं जिस प्रकार एक शिष्य एक सच्चे गुरु की तलाश करता है उसी प्रकार एक गुरु भी सच्चे शिष्य की तलाश करता है उस पर अपनी संपूर्ण कृपा उड़ेलना चाहता है परंतु आज के परिवेश में ऐसा सच्चा गुरु भले ही मिल जाए पर  सच्चा शिष्य नहीं मिलता है ।

आज गुरु भी परेशान एवं भयभीत है कि अपनी संपूर्ण शिक्षा किस पर उड़ेले आखिर शिष्य भी तो ऐसा होना चाहिए जो श्रद्धा भाव से ग्रहण करें । शिष्य भी तभी तक  लिपटा रह रहा है जब तक उसका स्वार्थ पूरा नहीं हो जाता। अगर गुरु की कृपा हो जाए तो ईश्वर से साक्षात्कार हो सकता है वही भाग्य भी बदल जाता है। जो श्रद्धा से गुरु आज्ञा में रहता है उसकी विद्या सार्थक हो जाती है। कर्ण, शिवाजी, स्वामी विवेकानंद जैसे महान पुरुष गुरु की कृपा से ही श्रेष्ठता को प्राप्त करते हैं।

Advertisement

7489697916 for Ad Booking