शशिकांत ओझा
बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो. संजीत कुमार गुप्ता के संरक्षण में भाषा महोत्सव का आयोजन किया गया। भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन सुब्रह्मण्य भारती के जन्म पर मनाया जाता है। सुब्रह्मण्य भारती एक तमिल कवि थे। उनको ‘महाकवि भारतियार’ के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कविताओं में राष्ट्रभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है।
वह एक कवि होने के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानी, समाज सुधारक, पत्रकार तथा उत्तर भारत व दक्षिण भारत के मध्य एकता-सेतु के समान थे। इस संगोष्ठी का विषय ‘बहुभाषिकता और भारतीय संस्कृति’ था। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता प्रो. यशवंत सिंह ने कहा कि भाषा, भाषा के पार जाना सिखाती है। भाषा हमारी संस्कृति का धागा है जितनी बोलिया है उस माला के फूल हैं।
भाषा के पार एक व्यक्तित्व होता है। भाषा हमारी सांस्कृतिक पहचान होती है। संस्कृति व्यक्ति को जोडती है। कबीर जिस भाषा में बात करते थे वह सधुक्कड़ी है। उन्होंने यह भी कहा की कबीर की भाषा सांस्कृतिक भाषा है। सभी सभ्यताएं मिलकर एक संस्कृति बनाती है। विशिष्ट वक्ता प्रो.अजय बिहारी पाठक ने कहा कि दमनकारी उपनिवेश के बाद भी हमारे देश में अनेक भाषाएँ है। भारतीय समाज बना ही ऐसा है जिसमें स्वाभाविक रूप से बहुभाषिकता आ गयी है।
अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. फूलबदन सिंह ने कहा कि हम भौतिकता की चकाचौध में न रहे। आज न संवेदना है ना ही संवाद है। भौतिकता दोनों को नष्ट कर रही है। अपनी भाषा और संस्कृति पर हमें गर्व करना चाहिए। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के प्रभारी डॉ.संदीप यादव ने किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ.अभिषेक मिश्र ने किया। इस अवसर पर शैक्षणिक निदेशक डॉ.पुष्पा.मिश्रा, डॉ.प्रवीण नाथ यादव, डॉ.प्रमोद शंकर पाण्डेय, डॉ.शैलेन्द्र सिंह, डॉ.हर्ष त्रिपाठी एवं विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।