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सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों और सरकार ने पत्रकारों से भी मुंह मोड़ा

-समाज के लिए यक्षप्रश्न
-जिले के दो प्रतिनिधि हैं प्रदेश सरकार में मंत्री, सांसद और विधायकों की भी ठीक-ठाक संख्या
-लगभग अधिकतर जनप्रतिनिधि भी जिले में, पर धरनास्थल तक आने की भी फुरसत नहीं

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बलिया : प्रजातांत्रिक देश में लोकतंत्र की मर्यादा रखने और बचाने के लिए कई तरह के प्रयास होते थे। इसके लिए सत्ता और विपक्ष की कोई मर्यादा नहीं रहती थी। परंतु बलिया में पत्रकारों का दर्द पूरे देश का ज्वलंत मुद्दा बना है पर सत्ताधारी दल के जनप्रतिनिधियों को यह दिखाई नहीं दे रहा है। जिले में यह वर्तमान समय का यक्षप्रश्न बना है कि आखिर सत्ताधारी दल के लोगों को यह क्यों नहीं दिख रहा है।

बलिया में 30.मार्च को तीन पत्रकारों को जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक ने पेपर लीक होने की खबर प्रकाशित करने के लिए जेल में बंद कर दिया। जिले के पत्रकारों ने इसका विरोध करना प्रारंभ किया। घटना के लगभग20 दिन बीत चुके हैं लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया वर्ग संकट में है पर यह किसी को दिखाई शायद नहीं दे रहा है। उन सभी राजनेताओं के धरने तक पहुंचने में मीडिया कभी पीछे नहीं रही पर आज सभी को सांप सूंघ गया है। मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त संदीप पांडेय, विपक्ष और समाजिक संगठनों का समर्थन तो मिला है पर सत्ताधारी दल भाजपा के लोगों को यह नहीं दिख रहा है। जिले में इस दल के नेताओं की संख्या भी अधिक है। बात उनकी करें तो राज्यसभा में हरिवंश, नीरज शेखर और सकलदीप राजभर हैं। हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति हैं और पत्रकार भी रहे हैं। लोकसभा में वीरेंद्र सिंह मस्त, रविंद्र कुशवाहा हैं। प्रदेश सरकार में यहां से दयाशंकर सिंह और दानिश आजाद अंसारी मंत्री भी हैं। केतकी सिंह विधायक भी हैं। पिछली बार सरकार में मंत्री रहे उपेंद्र तिवारी और आनंद स्वरूप शुक्ल भी हैं पर कोई पत्रकारों के सामने नहीं आ रहा। माना पत्रकार जिलाधिकारी के विरूद्ध आंदोलन कर रहे हैं तो कमिश्नर और डीआईजी भी आकर बात कर सकते हैं। पर किसी को लोकतंत्र की मर्यादा समझ में नहीं आ रही।

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