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पढ़िए इस कवियत्री की कविता को

आंखों की किरकिरी

अनुपमा दुबे, कवियत्री

क्या हुआ, उसने सच बोल दिया क्या ? अपना मुंह खोल दिया क्या ?

इसीलिए सब को चुभने लगी 

हर एक के आंखों में खटकने लगी

बेचारी राजनीति से दूर थी 

भावनाओं के हाथों मजबूर थी 

किसी के तीन पाँच में नहीं रहती थी

लोगों के तिकड़मों को नहीं समझती थी 

रीति नीति को मानती थी

साम दाम दंड भेद नहीं जानती थी 

जो दिल में , वही ज़ुबां से बोलती थी

दिल में बैर छुपाकर , जुबान से मीठा नहीं बोलती थी 

किसी के पीछे षड्यंत्र रचना उसे नहीं आता था 

इसीलिए शायद लोगों को उसका साथ नहीं भाता था

 किसी के दुख में दुखी हो जाती तो खुशी में नाच उठती 

उसे पद, प्रशंसा, पैसे की चाह नहीं थी इसीलिए उसके लिए आसान कोई राह नहीं थी 

किसी को गिरा कर ऊपर उठना उसने सीखा नहीं 

किसी को रुला कर मुस्कुराना उसे आया नहीं 

उसने जाना ही नहीं लोगों के लिए वह महज जरूरत थी 

जो पूरी होने पर बदल जाया करती है हमेशा बिना भेदभाव के सबको हंसाती थी 

अपने सारे घाव मुस्कान के पीछे छुपाती थी 

लेकिन न जाने क्या हुआ कि उसकी आत्मा अधमरी हो गई 

सबको प्यार देने वाली आज आंख की किरकिरी हो गई ।

अनुपमा दुबे

रायपुर (छत्तीसगढ़)