-शहीदों को नमन और श्रद्धांजलि
-भारतीय रेल मंत्रालय के आईआरटीएस निर्भय नारायण सिंह की होगी अगुवाई
शशिकांत ओझा
बलिया : 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस तो पूरा देश मनाता है पर महर्षि भृगु की ऐतिहासिक धरती बागी बलिया अगस्त महीने में अलग अलग तिथियों पर अलग अलग स्थानों के बलिदान हुए शहीदों को नमन किया जाता है। इसी क्रम में बैरिया बलिदान दिवस 18 अगस्त को मनाया जाता है। पूरा जनपद बैरिया के शहीदों को नमन करता है। इस वर्ष भी बैरिया बलिदान दिवस पर शहीदों को नमन किया जाएगा पर आयोजन ऐतिहासिक होगा। कारण रेल मंत्रालय भारत सरकार के आईआरटीएस निर्भय नारायण सिंह की अगुवाई में इस दिन सद्भावना यात्रा निकलेगी।
बैरिया बलिदान दिवस पर रेल मंत्रालय के आईआरटीएस निर्भय नारायण सिंह की अगुवाई में दूबे छपरा इंटर कालेज से सद्भावना यात्रा निकलेगी। यात्रा दूबे छपरा से बैरिया पहुंच शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन करेगी। सद्भावना यात्रा दोपहिया वाहन की होगी। सद्भावना यात्रा में ढाई हजार से अधिक वाहनों के सहभागिता की संभावना है। बैरिया शहीद स्मारक पर शहीद कौशल सिंह सभी को नमन किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। आईआरटीएस निर्भय नारायण सिंह की अगुवाई में निकलने वाली सद्भावना यात्रा बैरिया के शहीदों को नमन करने के साथ आयोजन को अद्भुत बनाएगी।
यह है बैरिया बलिदान दिवस की गाथा
भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह के साथ हजारों की भीड़ को देख वहां के थानेदार काजिम ने खुद ही थाने पर तिरंगा फहराया था और थाना खाली करने के लिए क्रांतिकारियों से दो दिन की मोहलत मांगी थी। लेकिन थानेदार ने उसी दिन रात में जिला मुख्यालय से पांच सशस्त्र पुलिसकर्मियों को बुला लिया था और रात में तिरंगे को उतारकर फेंकवा दिया। इसकी भनक लगते ही क्रांतिकारियों ने थानेदार से बदला लेने के लिए 18 अगस्त तय किया था। दोपहर होते-होते 25 हजार से अधिक की भीड़ ने थाने को घेर लिया। महिलाओं के जत्थे की अगुवाई धनेश्वरी देवी, तेतरी देवी, राम झरिया देवी कर रही थीं। भूपनारायण सिंह, सुदर्शन सिंह, परशुराम सिंह, बलदेव सिंह, हरदेव सिंह, राजकिशोर सिंह, बैजनाथ साह, राजकुमार मिश्र आदि भीड़ का नेतृत्व कर रहे थे। थाने पर बढ़ती भीड़ को देख थानेदार ने थाने के छत पर सिपाहियों संग पहुंच कर मोर्चा संभाल लिया। इस बीच क्रांतिकारियों से थानेदार ने बात की लेकिन क्रांतिकारी इस धोखेबाज थानेदार पर विश्वास नहीं कर रहे थे। इसी बीच कुछ लोग थाने में बगल से घुस गए और थाने के घोड़े को खोलकर अस्तबल ढहा दिया साथ ही सैकड़ों की भीड़ थाने में घुस गई। इधर पुलिस ने गोली चलानी शुरु की तो उधर क्रांतिकारियों ने भी पथराव शुरु कर दिया। कौशल कुमार छलांग लगाकर तिरंगा लिए थाने की छत पर पहुंच गए उसे फहरा दिया, लेकिन पुलिस ने गोली मार दी जिससे वह शहीद हो नीचे गिर पड़े। शाम तक चले इस संघर्ष में 16 लोग थाने परिसर में ही शहीद हो गए लेकिन भीड़ जमी रही। कारतूस खत्म होने के कारण थानेदार और सिपाही जिस ओर क्रांतिकारी नहीं थे उस ओर से भाग खड़े हुए। शहीद होने वालों में गोन्हिया छपरा निवासी निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, विशुनपुरा निवासी नरसिंह राय, तिवारी के मिल्की निवासी रामजनम गोंड, चांदपुर निवासी रामप्रसाद उपाध्याय, टोलागुदरीराय निवासी मैनेजर सिंह, सोनबरसा निवासी रामदेव कुम्हार, बैरिया निवासी रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, शुभनथही निवासी धर्मदेव मिश्र, मुरारपट्टी निवासी श्रीराम तिवारी, बहुआरा निवासी मुक्तिनाथ तिवारी, श्रीपालपुर निवासी विक्रम सोनार, भगवानपुर निवासी भीम अहीर शामिल थे। जबकि दयाछपरा निवासी गदाधर नाथ पांडेय, मधुबनी निवासी गौरीशंकर राय, गंगापुर निवासी रामरेखा शर्मा सहित तीन लोगों की जेल यातना में मृत्यु हुई। इसके अलावा भी कितने क्रांतिकारियों को जेल की काल कोठरी में दाल दिया गया, जिसका नाम तक प्रकाश में नहीं आ सका