
हिसाब का बेहिसाब हो जाना ही प्यार है शायद…
हिसाब का बेहिसाब हो जाना ही,
प्यार है शायद…..
अनकही बातों का सुर्खियाँ बन जाना ही,
प्यार है शायद….
इश्क में शायद हर कवायद लाजिमी है,
कि उनके दिए दर्द को, दवा समझना ही
प्यार ह्रै शायद…..
यूँ तो चाँद, आस्मां में ही निकलता है,
पर खिड़कियों में, चाँद का नजर आना ही,
प्यार है शायद…..
उस हवा के, इक झोंके के पीछे,
मेरा धूल बन उड़ जाना ही,
प्यार है शायद…..
रत्ना श्रीवास्तव
साईं सदन
प्लॉट नं 661, फ्लैट नं 500
एक्सटेंशन -1, शालीमार गाडैन
साहिबाबाद, गाजियाबाद (उप्र)