-प्रवचन
-संपन्न हुआ आर्य समाज का तीन दिवसीय आयोजन
रविशंकर पांडेय
बांसडीह (बलिया) : आर्य समाज को बहुत से लोग अभी तक नहीं समझ पाए हैं। देश में कभी हिंदू समाज की दुर्दशा थी। अंधविश्वास, छुआछूत, भेदभाव,आडंबर, रूढ़िवादी परंपराएं हावी थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इन सभी बुराइयों का डटकर मुकाबला किया एवं 10 अप्रैल 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। उक्त बातें मनियर परशुराम स्थान पर आर्य समाज के तीन दिवसीय कार्यक्रम के समापन के अवसर पर मंगलवार की रात अपने प्रवचन के दौरान ज्ञान प्रकाश वैदिक जी ने कही।
कहा कि आर्य समाज न तो कोई धर्म है ,न पंथ है ,न ही कोई राजनीतिक विचारधारा है। बल्कि वेदों के आधार पर यह हिंदू समाज सुधार आंदोलन है । उन्होंने कहा कि 19वीं सदी में हिंदू समाज छुआछूत, ऊंच- नीच, जाति प्रथा के सोंच में पड़ा था। नारी समाज चाहरदीवारी में कैद थी। नारी को शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। पति की मौत के बाद पत्नियों को पति के साथ चिताओं पर जलाया जाता था। इन बुराइयों के कारण व आपसी फूट के कारण विदेशी आक्रांताओं ने देश को गुलाम बना दिया । तब जाकर 10 अप्रैल 1875 को दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और इन सभी बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए चल पड़े। उन्हीं के विचारों पर आर्य समाज चलता है। देवरिया से पधारी नैन श्री प्रज्ञा जी ने नारियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज की नारियां अपनी सुंदरता को बनाए रखने के लिए बच्चों को अपने अमृतमयी छाती का दूध पिलाने की जगह बोतल उनके मुंह में लगा देती है वही बोतल का आदि बच्चा जब बड़ा होकर बोतल का दारू पीने लगता है तो मां को बहुत कष्ट होता है। कार्यक्रम का संचालक देवेंद्र नाथ त्रिपाठी एवं आयोजक रघुनाथ प्रसाद स्वर्णकार रहे।