
सूर्योपासना का पर्व
-27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य
-28 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य

शशिकांत ओझा
बलिया : हिन्दू धर्म में आस्था का महापर्व डाला छठ सूर्योपासना का पर्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को होने की वजह से इसे षष्ठी व्रत या छठ कहा जाता है। इस साल आस्था का यह महापर्व 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक है। 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा तो 28 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर महाव्रत पूर्ण होगा।


आस्था के महापर्व के महात्म्य और तिथि को लेकर “बलिया समाचार” ने ज्योतिषाचार्य डा. अखिलेश उपाध्याय से वार्ता की। डा. उपाध्याय के मुताबिक डाला छठ में षष्ठी तिथि पर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य आरोग्य के देवता हैं। यह पर्व संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए मनाया जाता है। 2025 में यह पर्व 25 से 28 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। इस व्रत को करने से पारिवारिक सुख तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ पूजा की शुरुआत नहाय खाय के साथ होती है। अगले दिन खरना का व्रत किया जाता है। खरना व्रत के दौरान संध्याकाल में व्रत करने वाले उपासक प्रसाद के रूप में गुड़-खीर, रोटी, मूली आदि और फल खाते हैं। उसके बाद अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। मान्यता है कि खरना पूजन से षष्टी देवी छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है। मां घर में वास करती हैं। छठ पूजा में षष्ठी तिथि अहम मानी जाती है। इस दिन नदी या जलाशय के तट पर शाम में सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।

नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होगी। नहाय खाय के दिन पूरे घर की साफ-सफाई की जाएगी और स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाएगा। इस दिन चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। पूजा के लिए फल, दीये आदि खरीदे जाएंगे।

खरना (26 अक्टूबर)
इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखेंगी और शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ वाली खीर का प्रसाद बनाएंगी और फिर सूर्य देव की पूजा करने के बाद यह प्रसाद ग्रहण किया जाएगा। इसके बाद व्रत का पारण छठ के समापन के बाद ही किया जाएगा।

अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य (27 अक्टूबर)
यह दिन बहुत ही विशेष होगा,श्रद्धालु पूरी निष्ठा के साथ उपवास रखेंगे। सूर्य देव की पूजा होगी। डूबते हुए सूर्य को जल और दूध से अर्घ्य दिया जाएगा और ठेकुआ, मौसमी फल और अन्य प्रसाद सूर्य देव को चढ़ाए जाएंगे।

उदीयमान सूर्य (उषा) अर्घ्य (28 अक्टूबर)
अंतिम दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसके बाद कच्चा दूध और प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण किया जाएगा और इस तरह से इस महापर्व का समापन होगा।

डाला छठ पर्व का महत्व
ज्योतिषाचार्य डा. अखिलेश उपाध्याय के मुताबिक डाला छठ पर्व सूर्य देव की पूजा का पर्व है, जो जीवन में ऊर्जा और प्रकाश लाते हैं।
यह पर्व छठी मैया को भी समर्पित है, जो संतान की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। छठ पर्व प्रकृति, परिवार, स्वास्थ्य और लोक संस्कृति का अद्भुत संगम है। इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी समस्या दूर होती है। कुष्ठ रोग या पाचन संबंधी समस्या होने पर व्रत रखना लाभकारी होता हैं। कुंडली में सूर्य की स्थिति कमजोर होने पर व्रत रखने से सूर्य की स्थिति मजबूत होगी।



