-चिंता अपने अस्तित्व की
-कटानरोधी कार्य विभाग द्वारा कराया गया पर गंगा का रुख अभी भी गांव की ओर
शशिकांत ओझा
बलिया : मानसून और बाढ़ आने में तो अभी समय है पर कटान पीड़ित गांवों के लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें और पसीना दिखने लगा है। शाहपुर बभनौली, इच्छा चौबे का पूरा गांव के लोगों को गंगा के कटान को लेकर फिर से चिंता सताने लगी है। शाहपुर बभनौली तो अपने अस्तित्व को बचाने की जंग लड़ रहा है जबकि गंगा का कटान इच्छा चौबे का पूरा गांव के करीब पहुंच गया है।
विकास खण्ड सोहांव का ऐसा गांव जहां आजादी के बाद इसी गांव में अवध पुस्तकालय खोला गया। छात्र जीवन में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी इसी गांव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वामी ओमकारानंद के यहां कई दिनों तक समय बिताया करते थे। 1982 से गंगा का कटान शुरू हुआ शाहपुर बभनौली गांव के घर जमीन ट्यूबवेल गंगा कटान से गंगा में विलीन होते गए गांव को बचाने के लिए ठोकर भी बनाया गया लेकिन गंगा का कटान जारी रहा। इस गांव के लोग पलायन करते गये। ढाई सौ घरों वाले इस गांव में महज 50 घर बचे हैं जो कटान के मुहाने पर है।
गंगा के जलस्तर में जैसे ही वृद्धि होने लगती हैं इस गांव के लोगों की धड़कनें भी तेज होने लगती है। गंगा कटान का रूख अब इच्छा चौबे का पूरा गांव के तरफ हो गया है। गंगा का कटान इस गांव के करीब पहुंच गया है। इस गांव को बचाने के लिए गांव के महंथ शर्मा उर्फ मौनी बाबा ने शासन प्रशासन से गुहार लगाई। इसके बाद कटान रोधी कार्य कराए गए लेकिन पिछले साल बाढ़ के दिनों में बड़े पैमाने पर उपजाऊ जमीन गंगा में विलीन हो गई। इस गांव के लोगों को इस साल भी कटान का डर सता रहा है।
हालांकि बैरिया थम्हनपुरा मार्ग को गंगा कटान से बचाने के लिए कुछ जगहों पर बोल्डर गिरा कर कटान रोधी काम चल रहा है। वहीं शाहपुर बभनौली गांव के लोग जो कटान के मुहाने पर है वह भी बाढ़ को लेकर सकते में हैं।