
-माल्देपुर गंगा घाट पर नाव हादसा
-एक ही नाव पर सवार थे आठ परिवार के लोग, संख्या नाव पर 30.से अधिक
-पीपा पुल नजदीक होने के कारण राहत बचाव कार्य में मिली काफी सहुलियत


शशिकांत ओझा
बलिया : माल्देपुर गंगा घाट पर सोमवार को मुंडन संस्कार के कारण भारी भीड़ उमड़ी। सुबह सुबह ही मुंडन संस्कार के ओहार रस्म में लोगों को लेकर जा रही नाव पलट गई। इस हादसे में तीन महिलाओं की मौत हो गयी। हादसे के बाद तुरंत घाट पर अफरा तफरी का माहौल उत्पन्न हो गया। पुलिस प्रशासन ने भी तत्काल ही मोर्चा संभाल लिया।


नाव हादसे में सीमा यादव (32) पुत्री मखनू यादव निवासी नवानगर थाना बांसडीहरोड, इंद्रावती देवी (60) पत्नी नेपाल खरवार निवासी सोनबरसा थाना गड़वार, गंगोत्री देवी (55) पत्नी मुख्तार खरवार निवासी सोनबरसा थाना गड़वार की डूबने से मौत हो गई। इसके अलावा सुकरा देवी 50 पत्नी शिव शंकर निवासी सागरपाली थाना फेफना, मंजू देवी 32 पत्नी हरेंद्र प्रजापति निवासी लालगंज बैरिया, मालती देवी 55 निवासी सुखपुरा, सरोज कुमारी 35 पत्नी रंजीत कुमार ठाकुर निवासी न्यू बहेरी जलालपुर थाना शहर कोतवाली, जमुना देवी 45 पत्नी हरेराम यादव निवासी नवानगर थाना बासडीहरोड का इलाज के लिए शजिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। नाव हादसा नाव पर ओवरलोडिंग के कारण हुआ। आठ दस परिवार के लोग ओहार के लिए एक ही नाव पर सवार हो गए। गनीमत रही की हादसा पीपा पुल के नजदीक हुआ था इसलिए स्थानीय लोगों को राहत और बचाव कार्य में काफी मदद मिली। घटना के तत्काल बाद पुलिस और जिला प्रशासन भी एक्टिव हो गया।

प्रशासन और पुलिस के सामने यह सवाल
हादसे के बाद सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक ऐसे नाव हादसे का लोग शिकार होते रहेंगे ? जर्जर और मानकविहीन ओवरलोड नावों का संचालन आखिर किसकी शह पर निर्बाध हो रहा है ? सर्वविदित है कि मुंडन संस्कार के लगन के दिन गंगा घाटों पर भीड़ बढ़ जाती है। इसके साथ ही घाट पर वैध व अवैध नावों की गतिविधियां भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है। बावजूद इसके स्थानीय प्रशासन स्तर से जर्जर नाव पर नकेल कसने की कवायद नहीं की जाती। ये जिम्मेदारी आमजन की भी बनती है कि वो बीती घटनाओं से सबक लेकर ओवरलोड व जर्जर नाव पर चढ़ने से परहेज करें।

ओझवलिया नाव हादसा की आ गई याद दुर्घटना
15 जून 2010 के ओझवलिया नाव दुर्घटना को जिसने भी देखा और सुना है, उस मंजर को स्मरण कर आज भी लोग सिहर उठते है। ओझवलिया नाव दुर्घटना जिले की अब तक की सबसे बड़ी नाव दुर्घटना मानी जाती है। इस हादसे में लगभग 62 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के बाद प्रशासन द्वारा कुछ सक्रियता अवश्य बढ़ी थी, लेकिन समय के साथ लोगों की आस्था का सैलाब देखते हुए पुलिस निष्क्रिय हो गई। ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ करते हुए फिर से ओवरलोड जर्जर नाव का संचालन बदस्तूर जारी रहा। माल्देपुर हादसा ने 13 वर्ष पूर्व उस घटना की याद को ताजा कर दिया।